दास्तान-गो : मैं पल दो पल का शा’इर हूं… ग़लत कहा न साहिर (लुधियानवी) साहब ने?

Daastaan-Go ; Sahir Ludhiyanvi Death Anniversary : तरक़्क़ी-पसंद लोगों में शुमार होते थे वे. इस नाते न ईश्वर को मानते थे, न अल्लाह को. लेकिन कमाल देखिए कि हिन्दुस्तान के लबों पर आज जो चुनिंदा भजन पाए जाते हैं, वे साहिर के ख़्याल से शुरुआत पाते हैं. मसलन, ‘अल्लाह तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम. सबको सन्मति दे भगवान’ या फिर ‘तोरा मन दर्पण कहलाए, भले बुरे सारे कर्मों को देखे और दिखाए’.

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